कालत्रयेऽपि भुवनत्रयवर्तमान-
सत्त्वप्रमाथि-मदनादिमहारयोऽमी ।
पश्याशु नाशमुपयान्ति दृशैव यस्या,
सा सम्मता ननु सतां समतैव देवी ॥21॥
अन्वयार्थ : अतीत, अनागत और वर्तमान नामक तीनों कालों में, और तीनों लोकों में 'गति' नामकर्म के उदय से परिवर्तमान समस्त प्राणयुक्त जीवतत्त्वों को अत्यधिक मथ डालने के स्वभाव वाले कामविकार आदि भयंकर शत्रुरूपी ये समूह, ऐसी जिस देवी के देखने मात्र से शीघ्र ही विनाश को प्राप्त होते हैं; देखो वह देवी समता-भावना ही सज्जनों के लिए अभीष्ट होगी ।