मल्‍लो न यस्य भुवनेपि समोऽस्ति सोऽयम्,
काम करोति विकृतिं तव तावदेव ।
यावन्न यासि शरणं समतां समान्‍तात्‌
सोपानतामुपगता शिवसौधभूमे ॥22॥
अन्वयार्थ : मोक्षरूपी महल के लिए सर्वतोभावेन सीढीपने को प्राप्त समता की जब तक शरण में नहीं जाते हो, ऐसा वीरशिरोमणि जिसका (प्रतिद्वन्दी) तीनों लोकों में भी नहीं है, वह यह कामदेव तुम्हारे लिए तब तक ही विकार को कराता है ।