+ कामाग्नि के पुंज के बीच समता द्वारा शीतलता -
ज्वालायमान-मदनानल-पुंजमध्ये,
विश्व कथं क्वथति कोऽपि कुतूहलेन ।
तस्मिन्नपीह समसौख्यमयीं हिमानीम्,
अध्यासते यतिवरा समता-प्रसादात् ॥24॥
अन्वयार्थ : जलकर भुनते हुए कामरूपी अग्नि के समूह के बीच सम्पूर्ण लोक को यह मोह नामक बैरी विनोदपूर्वक किस प्रकार उबाल रहा है! ऐसी पूर्वोक्‍त उदयागत जलती हुई कामाग्नि के पुंज के बीच में इस कलिकलित लोक में (भी) समता-भावना से समुद्भूत सुखमयी गंगा में (अवगाहन कर) समता-भावना की कृपा से सभी तपस्वीगण शीतलता में रहते हैं ।