
सत्साम्यभाव-गिरिगह्वर-मध्यमेत्य,
पद्मासनादिकमदोषमिद च बद्ध्वा ।
आत्मानमात्मनि सखे परमात्मरूपम्,
त्व ध्याय, वेत्सि ननु येन सुखं समाधे ॥26॥
अन्वयार्थ : हे आत्मीयजन ! तुम परमसमाधि सम्बन्धी अनन्त-सुख के बीजभूत परम आह्लाद को जिस कारण से जानना चाहते हो तो परमस्वास्थ्य-भावरूपी पर्वत की गुफा के बीच में जाकर दोषों से रहित इस पद्मासन आदि को बाँधकर निज निरंजन परमात्मा का निजात्मा में ध्यान करो जिससे समाधि के सुख को जान सको ।