
आराध्य धीर! चरणौ सतत गुरुणाम्,
लब्ध्वा तत दशम - मार्गवरोपदेशम् ।
तस्मिन् विधेहि मनस स्थिरतां प्रयत्नात्,
शोषं प्रयाति तव येन भवापगेयम् ॥27॥
अन्वयार्थ : परिषहों और उपसर्गों को जीतने वाले निरन्तर, वञ्चना रहित गुरुओं के चरणकमलों की भक्ति के प्रकर्ष से आराधना करो । आराधना के बाद में बालाग्र के आठवें भागप्रमाण तालुरन्ध्र प्रदेश नामक दसवें मार्ग का श्रेष्ठ उपदेश प्राप्त करके उस ब्रह्मरन्ध्र में अत्यन्त प्रयत्नपूर्वक मन को अविचल करो, जिससे सुषुम्ना-नाडिगत मनोनिरोध से तुम्हारी यह द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव और भव नामक संसार रूपी तरंगिणी सम्पूर्णत: शोष को प्राप्त करेगी ।