
नित्यं निरामयमनन्तमनादि-मध्यम्,
अर्हन्तमूर्जितमजं स्मरतो हृदीशम् ।
नाश न याति यदि जाति-जरादिकं ते,
तर्हि श्रम कथमय न मुधा मुनीनाम् ॥28॥
अन्वयार्थ : जो नित्य, सम्पूर्ण व्याधियों से रहित, आदि-मध्य और अन्त से भी रहित, प्रकाशरूप, उत्पत्ति-विरहित, परम ऐश्वर्य से युक्त, अर्हद् भट्टारक रूप अथवा शुद्ध स्फटिक मणिमय चन्द्रकला के आकार रूप अर्हद् नाम मय है, उसका मन में स्मरण करने से तुम्हारे जन्म-मृत्यु-बुढ़ापा आदि दोषों का समूह नाश को प्राप्त नही होता है -- यदि ऐसा हो जाये तो तपोधनों का श्रम क्या व्यर्थ नही होगा ?