+ उस (पूर्वोक्त अजपा) आराधना का फल -
यन्न्यासत स्फुरति कोऽपि हृदि प्रकाश,
वाग्देवता च वदने पदमादधाति ।
लब्ध्वा तदक्षरवरं गुरुसेवया त्वम्,
मा मा कृथा कथमपीह विरामसस्मात्‌ ॥31॥
अन्वयार्थ : जिस सकल-निष्कल अक्षर की स्थापना करने से मन में कोई विशेष प्रकार का प्रकाश प्रस्फुटित होगा और वाग्देवता (सरस्वती) भी मुखकमल में स्थान ग्रहण कर लेती हैं, परम-गुरु की उपासना से उस सकल-निष्कल अक्षर के श्रेष्ठ उपदेश को प्राप्त करके तुम इस परम उपदेश से किसी भी तरह इस लोक में इन्कार कभी भी मत करो, मत करो ।