
'र्हं'मंत्रसारमतिभास्वरधामपुजम,
सम्पूज्य पूजिततम जपसंयमस्थ ।
नित्याभिराममविरामसपारसारम्,
यद्यस्ति ते शिवसुख प्रति सप्रतीच्छा ॥33॥
अन्वयार्थ : निरन्तर शोभा-समन्वित, अवसान-रहित, अनंतसाररूपी सनातन आनंद की अपेक्षा से वर्तमान में वाञ्छा तुम्हे रहती यदि है तो सम्पूर्ण मंत्रों के सारभूत, अत्यन्त मनोहरी, सुन्दर प्रकाश की राशि, जगत् के समस्त आराध्यों से भी आराधित होने योग्य अर्हन्त-अक्षर के जप के अनुष्ठान को करके चिन्तन करो ।