
द्व्-येकाक्षरं निगदितं ननु पिण्डरूपम्,
तस्यापि मूलमपरं परमं रहस्यम् ।
वदयामि ते गुरुपरम्परया प्रयातम्,
यन्नाहतं ध्वयनति तत्तदनाहताख्यम् ॥34॥
अन्वयार्थ : अरे ! पिंडात्मक मंत्र दो और एक अक्षर वाला कहा गया है । उसका भी मूल अन्य है, उत्कृष्ट रहस्य है, जो कि गुरु-परंपरा से आया है, तुम्हारे लिए कहता हूँ । जो बिना आहत हुए ध्वनित होता है, इसलिए वह अनाहत नाम से प्रसिद्ध है ।