
व्रजसि मनसि मोहं, चंचलं तावदेवम्,
बहुगुणगणगण्यम्, मन्यसेऽन्यञ्च देवम् ।
गुरुवचननियोगान्नेक्षसे यावदेवम्,
शशधरकरगौरं बिन्दुदेव स्फुरन्तम् ॥38॥
अन्वयार्थ : तभी तक मन में मोह को प्राप्त होते रहोगे जबतक ऐसे अस्थिर रहने वाले किसी अन्य देव को अनेक गुणों के समूह से युक्त मानते रहोगे और जबतक इसप्रकार गुरु के उपदेश के नियोग से चन्द्रकला के समान गौर वर्ण वाले प्रकाशमान बिन्दुभूतदेव का साक्षात्कार नही कर पाते हो ।