+ बिन्दुदेव की आराधना के प्रदेश तथा उस आराधना का फल -
झटिति करणयोगाद्‌ वीक्ष्यते भ्रू युगान्ते,
व्रजति यदि मनस्ते बिन्दुदेव स्थिरत्वम् ।
त्रुटति निबिडबन्धो वश्यतामेति मुक्ति,
तदलममलतल्पे योगनिद्रां भजस्व ॥39॥
अन्वयार्थ : शीघ्रता से इन्द्रिय-योग से भ्रकुटी-युगल के मध्य में बिन्दुदेव को देखोगे (इसके फलस्वरूप) यदि तुम्हारा मन स्थिरता को प्राप्त होता है (और) अत्यन्त मजबूत बन्ध (कर्मबंध) टूटता है (तथा) मोक्ष (रूपी लक्ष्मी तुम्हारी) आधीनता को प्राप्त होती है, तो (इतना) पर्याप्त है। (अब तुम) निर्मल (स्वभाव रूपी) शय्या पर योगनिद्रा को धारण करो ।