
शशधर-हुतभोजि-द्वादशार्द्ध-द्विषट्क-
प्रमितविदितमासै स्वस्वरूपप्रदर्शी ।
मदकल परपुष्टाम्भोद - नद्याम्बुराशि-
ध्वनिसदृश-रवत्वाज्जायतेऽसौ चतुर्धा ॥46॥
अन्वयार्थ : एक, तीन, छह और बारह संख्या वाले प्रसिद्ध महीनों में निज-आत्मस्वरूप का प्रदर्शक मदमत्त कोयल, बादल, नदी व समुद्र -- इनकी ध्वनियों से समानता रखने के कारण चार प्रकार का होता है ।एक महीने के अनुष्ठान से कोकिल-नाद होता है। तीन महीनों के अनुष्ठान से मेघसदृश नाद होता है। छह महीनों के अनुष्ठान से नदी-घोष होता है और बारह महीनों के अनुष्ठान से समुद्र-धोष उत्पन्न हो जायेगा -- ऐसा अभिप्राय है।