तच्चं बहु-भेय-गयं पुव्वायरिएहिं अक्खियं लोए।
धम्मस्स वत्तणट्ठं भवियाण पबोहणट्ठं च ॥2॥
(चौपाई)
तत्त्व कहे नाना परकार, आचारज इस लोकमँझार ।
भविक जीव प्रतिबोधन काज, धर्मप्रवर्तन श्रीजिनराज ॥2॥
अन्वयार्थ : [लोए] इस लोक में [पुव्वायरिएहिं] पूर्वाचार्यों ने [धम्मस्स वत्तणटुं] धर्म का प्रवर्तन करने के लिए [च] तथा [भवियाण पबोहणटुं] भव्यजीवों को समझाने के लिए [तच्चं] तत्त्व को [बहुभेयगयं] अनेक भेदरूप [अक्खियं] कहा है।