+ स्व-पर तत्त्व -
एगं सगयं तच्चं अण्णं तह परगयं पुणो भणियं ।
सगयं णिय-अप्पाणं इयरं पंचावि परमेट्ठी ॥3॥
आतमतत्त्व कह्यौ गणधार, स्वपरभेदतैं दोइ प्रकार ।
अपनौ जीव स्वतत्त्व बखानि, पर अरहंत आदि जिय जानि ॥3॥
अन्वयार्थ : [एग] एक [सगयं] स्वगत [तच्च] स्वतत्त्व है [तह] तथा [पुणो] फिर [अण्णं] दूसरा [परगयं] परतत्त्व [भणिय] कहा गया है। [सगयं] स्वगत तत्त्व [णिय] निज [अप्पाणं] आत्मा है; [इयर] दूसरा (परगततत्त्व) [पंचावि परमेट्ठी] पांचों ही परमेष्ठी हैं ।