समणे णिच्चल-भूए णट्ठे सव्वे वियप्प-संदोहे ।
थक्को सुद्ध-सहावो अवियप्पो णिच्चलो णिच्चो ॥7॥
मन थिर होत विकल्पसमूह, नास होत न रहै कछु रूह ।
सुद्ध स्वभावविषै ह्वै लीन, सो अविकल्प अचल परवीन ॥7॥
अन्वयार्थ : [समणे] अपने मन के [णिच्चलभूए] निश्चलीभूत होने पर [सव्वे] सर्व [वियप्पसंदोहे] विकल्प-समूह के [णट्ठे] नष्ट होने पर [अवियप्पो] विकल्प-रहित निर्विकल्प [णिच्चलो] निश्चल [णिच्चो] नित्य [सुद्धसहावो] शुद्ध स्वभाव [थक्को] स्थिर हो जाता है ।