+ शुद्धभाव -
जो खलु सुद्धो भावो सो अप्पा तं च दंसणं णाणं ।
चरणं पि तं च भणियं सा सुद्धा चेयणा अहवा ॥8॥
सुद्धभाव आतम दृग ज्ञान, चारित सुद्ध चेतनावान ।
इन्हैं आदि एकारथ वाच, इनमैं मगन होइकै राच ॥8॥
अन्वयार्थ : [जो] जो [खलु] निश्चय से [सुद्धोभावो] शुद्धभाव है [सो] वह [अप्पा] आत्मा है। [तं च] और वह आत्मा [दसणं] दर्शनरूप [णाणं] ज्ञानरूप [चरणंपि] और चारित्ररूप [भणियं] कहा गया है; [अहवा] अथवा [सा] वह [सुद्धा] शुद्ध [चेयणा] चेतनारूप है।