जं अवियप्पं तच्चं तं सारं मोक्ख-कारणं तं च ।
तं णाऊण विसुद्धं झायहु होऊण णिग्गंथा ॥9॥
परिग्रह त्याग होय निरग्रन्थ, भजि अविकल्प तत्त्व सिवपंथ ।
सार यही है और न कोय, जानै सुद्ध सुद्ध सो होय ॥9॥
अन्वयार्थ : [ज] जो [अवियप्पं] निर्विकल्प [तच्च] तत्त्व है, [तं] वही [सारं] सार[प्रयोजभूत] है [तं च] और वही [मोक्ख कारणं] मोक्ष का कारण है । [तं] उस [विशुद्ध] विशुद्ध तत्त्व को [णाऊण] जानकर [णिगंथो] निर्ग्रन्थ [होऊण] होकर [झायहु] ध्यान करो।