+ ध्यान की सामर्थ्य किसे? -
लाहालाहे सरिसो सुह-दुक्खे तह य जीविए मरणे ।
बंधु-अरि-यण-समाणो झाण-समत्थो हु सो जोई ॥11॥
जीवन मरन लाभ अरु हान, सुखद मित्र रिपु गिनै समान ।
राग न रोष करै परकाज, ध्यान जोग सोई मुनिराज ॥11॥
अन्वयार्थ : जो [लाहालाहे] लाभ और अलाभ में, [सुहदुक्खे] सुख और दुःख में [तह य] और उसी प्रकार [जीविए मरणे] जीवन तथा मरण में [सरिसो] सदृश रहता है, इसी प्रकार [बंधुअरियणसमाणो] बन्धु और शत्रु में समान भाव रखता है, [सो हु] निश्चय से वही [जोई] योगी [झाणसमत्यो] ध्यान करने में समर्थ है।