+ काल आदि लब्धियों द्वारा उत्तम सामाग्री की प्राप्ति -
कालाइ-लद्धि णियडा जह जह संभवइ भव्व-पुरिसस्स ।
तह तह जायइ णूणं सुसव्व-सामग्गि मोक्खट्ठं ॥12॥
काललब्धिबल सम्यक वरै, नूतन बंध न कारज करै ।
पूरव उदै देह खिरि जाहि, जीवन मुकत भविक जगमाहि ॥12॥
अन्वयार्थ : [जह जह] जैसे जैसे [भव्वपुरिसस्स] भव्य पुरुष की [कालाइलद्धि] काल आदि लब्धियां [णियडा] निकट [संभवइ] आती जाती हैं, [तह तह] वैसे वैसे ही [णूणं] निश्चय से [मोक्खट्ठ] मोक्ष के लिए [सुसव्वसामग्गि] उत्तम सर्व सामग्री [जायइ] प्राप्त हो जाती है।