जस्स ण कोहो माणो माया लोहो य सल्ल-लेस्साओ ।
जाइ-जरा-मरणं चिय णिरंजणो सो अहं भणिओ ॥19॥
क्रोध मान माया नहिं लोभ, लेस्या सल्य जहाँ नहिं सोभ ।
जन्म जरा मृतुकौ नहिं लेस, सो मैं सुद्ध निरंजन भेस ॥19॥
अन्वयार्थ : [जस्स] जिसके [ण कोहो] न क्रोध है, [ण माणो] न मान है, [ण माया] न माया है, [ण लोहो] न लोभ है, [ण सल्ल] न शल्य है, [ण लेस्साओ] न कोई लेश्या है, [ण जाइजरा-मरणं चिय] और न जन्म, जरा और मरण भी है, [सो] वही [णिरंजणो] निरंजन [अहं] मैं [भणिओ] कहा गया हूँ।