+ आत्मा और कर्म का संबंध -
संबंधो एदेसिं णायव्वो खीर-णीर-णाएण ।
एकत्तो मिलियाणं णिय-णिय-सब्भाव-जुत्ताणं ॥23॥
जैसैं एकमेक जल खीर, तैसैं आनौ जीव सरीर ।
मिलैं एक पै जदे त्रिकाल, तजै न कोऊ अपनी चाल ॥23॥
अन्वयार्थ : [णिय-णियसब्भावजुत्ताणं] अपने अपने सद्भाव से युक्त, किन्तु [एकत्तो मिलियाणं] एकत्व को प्राप्त [एदेसिं] इन जीव और कर्म का [संबंधो] सम्बन्ध [खीर-णीरणाएण] दूध और पानी के न्याय से [णायव्वो] जानना चाहिए।