+ चेतन और अचेतन का भेद-ज्ञान -
जह कुणइ को वि भेयं पाणिय-दुद्धाण तक्कजोएणं ।
णाणी वि तहा भेयं करेइ वरझाणजोएणं ॥24॥
नीर खीरसौं न्यारौ होय, छांछिमाहिं डारै जो कोय ।
त्यौं ज्ञानी अनुभौ अनुसरै, चेतन जड़सौं न्यारौ करै ॥24॥
अन्वयार्थ : [जह] जैसे [को वि] कोई पुरुष [तक्कजोएण] तर्क के योग से [पाणिय-दुद्धाण] पानी और दूध का [भेयं] भेद [कुणइ] करता है, [तहा] उसी प्रकार [णाणी वि] ज्ञानी पुरुष भी [वर-झाणजोएणं] उत्तम ध्यान के योग से [भेयं] चेतन और अचेतनरूप स्व-पर का [भेयं] भेद [करेइ] करता है।