झाणेण कुणउ भेयं पुग्गल-जीवाण तह य कम्माणं ।
घेत्तव्वो णिय अप्पा सिद्धसरूवो परो बंभो ॥25॥
(दोहा)
चेतन जड़ न्यारौ करै, सम्यकदृष्टी भूप ।
जड़ तजिकैं चेतन गहै, परमहंसचिद्रूप ॥25॥
अन्वयार्थ : [झाणेण] ध्यान से [पुग्गल-जीवाण] पुद्गल और जीव का [तह य] और उसी प्रकार [कम्माणं] कर्म और जीव का [भेयं] भेद [कुणउ] करना चाहिए। तत्पश्चात् [सिद्धसरूवो] सिद्ध-स्वरूप [परो बंभो] परम ब्रह्मरूप [णिय अप्पा] अपना आत्मा [णेत्तव्यो] ग्रहण करना चाहिए।