+ ध्याता अपने को सिद्ध-समान देखे -
णोकम्म-कम्मरहिओ, केवलणाणाइगुणसमिद्धो जो ।
सो हं सिद्धो सुद्धो णिच्चो एक्को णिरालंबो ॥27॥
सिद्ध सुद्ध नित एक मैं, ज्ञान आदि गुणखान ।
अगन प्रदेस अमूरती, तन प्रमान तन आन ॥27॥
अन्वयार्थ : [जो] जो सिद्ध जीव, [णोकम्म-कम्मरहिओ] [शरीरादि] नोकर्म, [ज्ञानावरणादि] द्रव्यकर्म तथा [राग-द्वेषादि] भावकर्म से रहित है, [केवलणाणाइ-गुणसमिद्धो] केवलज्ञानादि अनन्त गुणों से समृद्ध है, [सो हं] वही मैं [सिद्धो] सिद्ध हूँ, [सुद्धो] शुद्ध हूँ, [णिच्चो] नित्य हूँ, [एक्को] एक स्वरूप हूँ और [णिरालंबो] निरालंब हूँ।