+ ध्यान का विषय -
सिद्धोहं सुद्धोहं अणंतणाणाइसमिद्धो हं ।
देहपमाणो णिच्चो असंखदेसो अमुत्तो य ॥28॥
सिद्ध सुद्ध नित एक मैं, निरालम्ब भगवान् ।
करमरहित आनंदमय, अभै अखै जग जान ॥28॥
अन्वयार्थ : [सिद्धोहं] मैं सिद्ध हूँ, [सुद्धो हं] मैं शुद्ध हूँ, [अणंतणाणाइसमिद्धो हं] मैं अनन्त ज्ञानादि से समृद्ध हूँ, [देहपमाणो] मैं शरीर-प्रमाण हूं, [णिच्चो] मैं नित्य हूं, [असंखदेसो] में असंख्य प्रदेशी हूँ, [अमुत्तो य] और अमूर्त हूं।