थक्के मणसंकप्पे रुद्धे अक्खाण विसयवावारे ।
पयडइ बंभसरूवं अप्पा झाणेण जोईणं ॥29॥
मनथिर होत विषै घटै, आतमतत्त्व अनूप ।
ज्ञान ध्यान बल साधिकै, प्रगटै ब्रह्मसरूप ॥29॥
अन्वयार्थ : [मणसंकप्पे] मन के संकल्पों के [थक्के] बन्द हो जाने पर [अक्खण] और इन्द्रियों के [विसयवावारे] विषय-व्यापार के [रुद्ध] रुक जाने पर [जोईणं] योगियों के [झाणेण] ध्यान के द्वारा [बंभसरूवं] ब्रह्मस्वरूप [अप्पा] आत्मा [पयडइ] प्रकट होता है।