+ पर से ममत्व करने पर बंध -
परदव्वं देहाई कुणइ ममत्तिं च जाय तेसुवरिं ।
परसमयरदो तावं बज्झदि कम्मेहिं विविहेहिं ॥34॥
देह आदि परद्रव्यमैं, ममता करै गँवार ।
भयौ परसमैं लीन सो, बांधै कर्म अपार ॥34॥
अन्वयार्थ : [देहाई] देहादिक [परदव्वं] पर-द्रव्य हैं, [जाय च] और जबतक [तेसुवरि] उनके ऊपर [ममत्ति] ममत्व भाव [कुणइ] करता है, [तावं] तबतक वह [पर-समय-रदो] परसमय में रत है, अतएव [विविहेहिं] नाना प्रकार के [कम्मेहिं] कर्मों से [बज्झदि] बंधता है।