चेयणरहिओ दीसइ ण य दीसइ इत्थ चेयणासहिओ ।
तम्हा मज्झत्थो हं रूसेमि य कस्स तूसेमि ॥36॥
देखै सो चेतन नहीं, चेतन देखौ नाहिं ।
राग दोष किहिसौं करौं, हौं मैं समतामाहिं ॥36॥
अन्वयार्थ : [इत्थ] इस संसार में [चेयण-रहिओ] चेतन-रहित पदार्थ [दीसइ] दिखाई देता है, [चेयणा-सहिओ] और चेतना-सहित पदार्थ [ण य दीसइ] नहीं दिखाई देता है; [तम्हा] इस कारण [मज्झत्थोह] मध्यस्थ मैं [कस्स] किससे [रूसेमि] रुष्ट होऊँ [तूसेमि य] और किससे सन्तुष्ट होऊँ ?