+ योगी को किसी से राग-द्वेष नहीं -
अप्पसमाणा दिट्ठा जीवा सव्वे वि तिहुयणत्था वि ।
सो मज्झत्थो जोई ण य रूसइ णेय तूसेइ ॥37॥
थावर जंगम मित्र रिपु, देखै आप समान ।
राग विरोध करै नहीं, सोई समतावान ॥37॥
अन्वयार्थ : [तिहुयणत्था वि] तीन भुवन में स्थित भी [सव्वे वि] सभी [जीवा] जीव [अप्पसमाणा] अपने समान [दिट्ठा] दिखाई देते हैं, [सो] इसलिए वह [मज्झत्थो] मध्यस्थ [जोई] योगी [ण य] न तो [रूसइ] किसी से रुष्ट होता है [णेय] और नहीं [तूसेइ] किसी से सन्तुष्ट होता है।