जम्मण-मरणविमुक्का अप्पपएसेहिं सव्वसामण्णा ।
सगुणेहिं सव्वसरिसा णाणमया णिच्छयणएण ॥38॥
सब असंखपरदेसजुत, जनमै मरे न कोय ।
गुणअनंत चेतनमई, दिव्यदृष्टि धरि जोय ॥38॥
अन्वयार्थ : [णिच्छयणएण] निश्चयनय से सभी जीव [जम्मणमरणविमुक्का] जन्म-मरण से विमुक्त [अप्पपएसेहिं] आत्मप्रदेशों की अपेक्षा [सव्वसामण्णा] सभी समान [सगुणेहिं सव्वसरिसा] आत्मीय गुणों से सभी सदृश और [णाणमया] ज्ञानमयी हैं।