+ वस्तु-स्वभाव के ज्ञाता को राग-द्वेष का अभाव -
इय एवं जो बुज्झइ वत्थुसहावं णएहिं दोहिं पि ।
तस्स मणो डहुलिज्जइ ण राय-दोसेहिं मोहेहिं ॥39॥
निहचै रूप अभेद है, भेदरूप व्योहार ।
स्यादवाद मानै सदा, तजि रागादि विकार ॥39॥
अन्वयार्थ : [जो] जो ज्ञानी [दोहिं पि] दोनों ही [णएहिं] नयों से [इय एवं] यह इस प्रकार का [वत्थुसहाव] वस्तु-स्वभाव [बुज्झइ] जानता है [तस्स] उसका [मणो] मन [राय-दोसेहिं] राग-द्वेष [मोहेहिं] और मोह से [ण डहुलिज्जइ] डंवाडोल नहीं होता है।