+ अनासक्त योगी को आत्म दर्शन -
दिट्ठे विमल-सहावे णिय-तच्चे इंदियत्थ-परिचत्ते ।
जायइ जोइस्स फुडं अमाणुसत्तं खणद्धेण ॥42॥
देखैं विमलसरूपकौं, इन्द्रियविषै विसार ।
होय मुकति खिन आधमैं, तजि नरभौ अवतार ॥42॥
अन्वयार्थ : [विमलसहावे] निर्मल स्वभाववाले, [इंदियत्थपरिचत्त] इन्द्रियों के विषयों से रहित [णियतच्चे] निज आत्मतत्त्व के [दिट्ठे] दिखाई देने पर [खणद्धेण] आधे क्षण में [जोइस्स] योगी के [अमाणुसत्त] अमानुषपना [फुड] स्पष्ट प्रकट [जायइ] हो जाता है ।