णाणमयं णिय-तच्चं मेल्लिय सव्वे वि पर-गया भावा ।
ते छंडिय भावेज्जो सुद्ध-सहावं णियप्पाणं ॥43॥
ज्ञानरूप निज आतमा, जड़सरूप पर मान ।
जड़तजि चेतन ध्याइयै, सुद्धभाव सुखदान ॥43॥
अन्वयार्थ : [णाणमयं] ज्ञानमयी [णियतच्चं] निजतत्त्व को [मेल्लिय] छोड़कर [सव्वेवि] सभी [भावा] भाव [परगया] परगत हैं; [ते छंडिय] उन्हें छोड़कर [सुद्धसहाव] शुद्ध-स्वभाववाले [णियप्पाणं] निज आत्मा की ही [भावेज्जो] भावना करनी चाहिए।