मुक्खो विणास-रूवो चेयण-परिवज्जिओ सया देहो ।
तस्स ममत्ति कुणंतो बहिरप्पा होइ सो जीवो ॥48॥
अथिर अचेतन जड़मई, देह महादुखदान ।
जो यासौं ममता करै, सो बहिरातम जान ॥48॥
अन्वयार्थ : [देहो] शरीर [सया] सदाकाल [मुक्खो] मूर्ख है, [विणासरूवो] विनाशरूप है, [चेयणपरिवज्जिओ] चेतना से रहित है, जो [तस्स] उसकी [ममत्ति] ममता [कुणंतो] करता है [सो] वह [बहिरप्पा] बहिरात्मा [होइ] है।