रोयं सडणं पडणं देहस्स य पिक्खिऊण जर-मरणं ।
जो अप्पाणं झायदि सो मुच्चइ पंच-देहेहिं ॥49॥
सरै परै आमय धरै, जरै मरै तन एह ।
हरि ममता समता करै, सो न वरै पन-देह ॥49॥
अन्वयार्थ : [देहस्स य] देह के [रोयं] रोग [सडणं] सटन और [पडणं] पतन को तथा [जरमरणं] जरा और मरण को [पिक्खिऊण] देखकर [जो] जो भव्य [अप्पाणं] आत्मा को [झायदि] ध्याता है [स] वह [पंच देहेहिं] पांच प्रकार के शरीरों से [मुच्चइ] मुक्त हो जाता है।