+ कर्मोदय-कृत परीषह में लाभ -
जं होइ भुंजियव्वं कम्मं उदयस्स आणियं तवसा ।
सयमागयं च तं जइ सो लाहो णत्थि संदेहो ॥50॥
पापउदैकौं साधि, तप, करै विविध परकार ।
सो आवै जो सहज ही, बड़ौ लाम है सार ॥50॥
अन्वयार्थ : [ज] जो [कम्म] कर्म [तवसा] तप के द्वारा [उदयस्स] उदय में [आणिय] लाकर [भुंजियव्वं] भोगने के योग्य [होइ] होता है, [तं] वह [जइ] यदि [सयं] स्वयं [आगयं] उदय में आ गया है [सो] वह [लाहो] बड़ा भारी लाभ है; इसमें कोई [संदेहो] सन्देह [पत्थि] नहीं है ।