+ शुभ-अशुभ के कर्ता को बंध -
भुंजंतो कम्म-फलं भावं मोहेण कुणइ सुहमसुहं ।
जइ तो पुणो वि बंधइ णाणावरणादि-अट्ठ-विहं ॥52॥
(चौपाई - 15 मात्रा)
कर्मउदै सुख दुख संजोग, भोगत करैं सुभासुभ लोग ।
तातैं, बांधैं करम अपार, ज्ञानावरनादिक अनिवार ॥52॥
अन्वयार्थ : [कम्मफलं] कर्मों के फल को [भुंजतो] भोगता हुआ अज्ञानी पुरुष [जइ] यदि [मोहेण] मोह से [सुहमसुह] शुभ और अशुभ [भाव] भाव को [कुणइ] करता है, [तो] तब [पुणो वि] फिर भी वह [गाणावरणादि] ज्ञानावरणादि [अट्टविहं] आठ प्रकार के कर्म को [बंधइ] बांधता है।