+ निश्चय संवर और निर्जरा के धारक -
ण मुएइ सगं भावं ण परं परिणमइ मुणइ अप्पाणं ।
जो जीवो संवरणं णिज्जरणं सो फुडं भणिओ ॥55॥
गहै नहीं पर तजै न आप, करें निरन्तर आतमजाप ।
ताकैं संवर निर्जर होय, आस्रव बंध विनासै सोय ॥55॥
अन्वयार्थ : [जो जीवो] जो जीव [सगं] अपने [भावं] भाव को [ण माह] नहीं छोडता है, [पर] और पर पदार्थरूप [ण परिणमइ] परिणत नहीं होता है, किन्तु [अप्पाणं] अपने आत्मा का [मुणइ] मनन, चिन्तन और अनुभवन करता है, [सो] वह जीव [फुड] निश्चयनय से [संवरणं] संवर और [णिज्जरणं] निर्जरारूप [भणिओ] कहा गया है।