गमणागमणविहीणो फंदण-चलणेहि विरहिओ सिद्धो ।
अव्वाबाहसुहत्थो परमट्ठगुणेहिं संजुत्तो ॥68॥
आवागमनरहित निरबंध, अरस अरूप अफास अगंध ।
अचल अबाधित सुख विलसंत, सम्यकआदि अष्टगुणवंत ॥68॥
अन्वयार्थ : [गमणागमणविहीणो] गमन और आगमन से रहित [फंदण-चलणेहि] परिस्पन्द और हलन-चलन से रहित, [अव्वाबाहसुहत्थो] अव्याबाध सुख में स्थित [परमट्ठगुणेहिं] परमार्थ या परम अष्टगुणों से [संजुत्तो] संयुक्त [सिद्धो] सिद्ध परमात्मा होता है।