पद्मप्रभमलधारिदेव : संस्कृत
रत्नत्रयस्य भेदकरणलक्षणकथनमिदम् । मोक्षः साक्षादखिलकर्मप्रध्वंसनेनासादितमहानन्दलाभः । पूर्वोक्त निरुपचाररत्नत्रय-परिणतिस्तस्य महानन्दस्योपायः । अपि चैषां ज्ञानदर्शनचारित्राणां त्रयाणां प्रत्येकप्ररूपणाभवति । कथम्, इदं ज्ञानमिदं दर्शनमिदं चारित्रमित्यनेन विकल्पेन । दर्शनज्ञानचारित्राणांलक्षणं वक्ष्यमाणसूत्रेषु ज्ञातव्यं भवति ॥४॥ रत्नत्रय के भेद करने के सम्बन्ध में और उनके लक्षणों के सम्बन्ध में यह कथन है । समस्त कर्मों के नाश द्वारा साक्षात् प्राप्त किया जानेवाला महा-आनन्द का लाभ सो मोक्ष है । उस महा-आनन्द का उपाय पूर्वोक्त निरुपचार रत्नत्रयरूप परिणति है । पुनश्च इन तीन (ज्ञान, दर्शन और चारित्र) का भिन्न-भिन्न निरूपण होता है । किस प्रकार ? यह ज्ञान है, यह दर्शन है, यह चारित्र है - इसप्रकार भेद करके । जो गाथा सूत्र आगे कहे जायेंगे उनमें दर्शन-ज्ञान-चारित्र के लक्षण ज्ञात होंगे ॥४॥ (कलश-रोला)
मुनियों को मोक्ष का उपाय शुद्ध-रत्नत्रयात्मक आत्मा है । ज्ञान इससे कोई अन्य नहीं है, दर्शन भी इससे अन्य नहीं है और शील (चारित्र) भी अन्य नहीं है । यह, मोक्ष को प्राप्त करनेवालों ने कहा है । इसे जानकर जो जीव माता के उदर में पुनः नहीं आता, वह भव्य है ॥११॥
रत्नत्रय की परिणति से परिणमित आतमा । श्रमणजनों के लिए सहज यह मोक्षमार्ग है ॥ दर्शन-ज्ञान-चरित आतम से भिन्न नहीं हैं । जो जाने वह भव्य न जावे जननि उदर में ॥११॥ |