जीवा पोग्गलकाया धम्माधम्मा य काल आयासं ।
तच्चत्था इदि भणिदा णाणागुणपज्जएहिं संजुत्ता ॥9॥
जीवाः पुद्गलकाया धर्माधर्मौ च काल आकाशम् ।
तत्त्वार्था इति भणिताः नानागुणपर्यायैः संयुक्ताः ॥९॥
विविध गुणपर्याय से संयुक्त धर्माधर्म नभ ।
अर जीव पुद्गल काल को ही यहाँ तत्त्वारथ कहा ॥९॥
अन्वयार्थ : [जीवाः पुद्गलकायाः] जीव, पुद्गलकाय, [धर्माधर्मौ कालः च] धर्म, अधर्म, काल, और [आकाशम्] आकाश [तत्त्वार्थाः इति भणिताः] यह तत्त्वार्थ कहे हैं, जो कि [नानागुणपर्यायैः संयुक्ताः] विविध गुण-पर्यायों से संयुक्त हैं ।
Meaning : Soul, Matter, medium of motion, medium of rest, space, baving dimensions, and Time, together with their various attributes and modifications are said to be the principles . Commentary. Out of the above six realities or substances, called Tattvartha, the first five occupy more than one unit of space.
पद्मप्रभमलधारिदेव
पद्मप्रभमलधारिदेव : संस्कृतअत्र षण्णां द्रव्याणां पृथक्पृथक् नामधेयमुक्तम् । स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्रमनोवाक्कायायुरुच्छ्वासनिःश्वासाभिधानैर्दशभिः प्राणैः जीवतिजीविष्यति जीवितपूर्वो वा जीवः । संग्रहनयोऽयमुक्त : । निश्चयेन भावप्राणधारणाज्जीवः । व्यवहारेण द्रव्यप्राणधारणाज्जीवः । शुद्धसद्भूतव्यवहारेण केवलज्ञानादिशुद्धगुणानामाधारभूतत्वा-त्कार्यशुद्धजीवः । अशुद्धसद्भूतव्यवहारेण मतिज्ञानादिविभावगुणानामाधारभूतत्वादशुद्धजीवः । शुद्धनिश्चयेन सहजज्ञानादिपरमस्वभावगुणानामाधारभूतत्वात्कारणशुद्धजीवः । अयं चेतनः ।अस्य चेतनगुणाः । अयममूर्तः । अस्यामूर्तगुणाः । अयं शुद्धः । अस्य शुद्धगुणाः ।अयमशुद्धः । अस्याशुद्धगुणाः । पर्यायश्च । तथा गलनपूरणस्वभावसनाथः पुद्गलः ।श्वेतादिवर्णाधारो मूर्तः । अस्य हि मूर्तगुणाः । अयमचेतनः । अस्याचेतनगुणाः ।स्वभावविभावगतिक्रियापरिणतानां जीवपुद्गलानां स्वभावविभावगतिहेतुः धर्मः ।स्वभावविभावस्थितिक्रियापरिणतानां तेषां स्थितिहेतुरधर्मः । पंचानामवकाशदान-लक्षणमाकाशम् । पंचानां वर्तनाहेतुः कालः । चतुर्णाममूर्तानां शुद्धगुणाः, पर्यायाश्चैतेषांतथाविधाश्च । (कलश--मालिनी) इति जिनपतिमार्गाम्भोधिमध्यस्थरत्नं द्युतिपटलजटालं तद्धि षड्द्रव्यजातम् । हृदि सुनिशितबुद्धिर्भूषणार्थं विधत्ते स भवति परमश्रीकामिनीकामरूपः ॥१६॥
यहाँ (इस गाथामें), छह द्रव्यों के पृथक्-पृथक् नाम कहे गये हैं । - स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र, मन, वचन, काय, आयु और श्वासोच्छवास नामक दस प्राणों से (संसार दशा में) जो जीता है, जियेगा और पूर्वकाल में जीता था वह 'जीव' है । यह संग्रहनय कहा ।
- निश्चय से भाव-प्राण धारण करने के कारण जीव है ।
- व्यवहार से द्रव्य-प्राण धारण करने के कारण 'जीव' है ।
- शुद्ध-सद्भूत-व्यवहार से केवलज्ञानादि शुद्ध-गुणों का आधार होने के कारण 'कार्यशुद्ध जीव' है ।
- अशुद्ध-सद्भूत-व्यवहार से मतिज्ञानादि विभावगुणों का आधार होने के कारण 'अशुद्ध जीव' है ।
- शुद्ध निश्चय से सहजज्ञानादि परम-स्वभाव गुणों का आधार होने के कारण 'कारणशुद्ध जीव' है ।
- यह (जीव) चेतन है; इसके (जीव के) चेतन गुण हैं ।
- यह अमूर्त है; इसके अमूर्त गुण है ।
- यह शुद्ध है; इसके शुद्ध गुण है ।
- यह अशुद्ध है; इसके अशुद्ध गुण है ।
- पर्याय भी इसी प्रकार है । और,
- जो गलन-पूरण स्वभाव सहित है (अर्थात् पृथक् होने और एकत्रित होने के स्वभाववाला है) वह पुद्गल है ।
- यह (पुद्गल) श्वेतादि वर्णों के आधारभूत मूर्त है; इसके मूर्त गुण हैं ।
- यह अचेतन है; इसके अचेतन गुण है ।
- स्वभाव गति-क्रियारूप और विभाव गति-क्रियारूप परिणत जीव-पुद्गलों को स्वभाव गति का और विभाव गति का निमित्त सो धर्म है ।
- स्वभाव स्थिति-क्रियारूप और विभाव स्थिति-क्रियारूप परिणत जीव-पुद्गलों को स्थिति का (स्वभाव-स्थिति का तथा विभाव-स्थिति का) निमित्त सो अधर्म है ।
- (शेष) पाँच द्रव्यों को अवकाश-दान (अवकाश देना) जिसका लक्षण है वह आकाश है ।
- (शेष) पाँच द्रव्यों को वर्तना का निमित्त वह काल है ।
- (जीव के अतिरिक्त) चार अमूर्त द्रव्यों के शुद्ध गुण हैं; उनकी पर्यायें भी वैसी (शुद्ध ही) हैं ।
(कलश--रोला)
जिनपति द्वारा कथित मार्गसागर में स्थित ।
अरे तेज के पुंज विविध विध किरणों वाले ॥
छह द्रव्यों रूपी रत्नों को तीक्ष्णबुद्धि जन ।
धारण करके पा जाते हैं मुक्ति सुन्दरी ॥१६॥
इसप्रकार उस षट्द्रव्य समूहरूपी रत्न को, जो कि (रत्न) तेज के अम्बार के कारण किरणोंवाला है और जो जिनपति के मार्गरूपी समुद्र के मध्य में स्थित है उसे, जो तीक्ष्ण बुद्धिवाला पुरुष हृदय में भूषणार्थ (शोभा के लिये) धारण करता है, वह पुरुष परमश्रीरूपी कामिनी का वल्लभ होता है (अर्थात् जो पुरुष अन्तरंग में छह द्रव्य की यथार्थ श्रद्धा करता है, वह मुक्ति-लक्ष्मी का वरण करता है) ॥१६॥
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