पद्मप्रभमलधारिदेव : संस्कृत
अथेदानीमजीवाधिकार उच्यते । यह, पुद्गलद्रव्यके भेदोंका कथन है ।प्रथम तो पुद्गलद्रव्यके दो भेद हैं : स्वभावपुद्गल और विभावपुद्गल । उनमें, स्वभावपुद्गलः परमाणुः, विभावपुद्गलः स्कन्धः । कार्यपरमाणुः कारणपरमाणुरिति स्वभाव-पुद्गलो द्विधा भवति । स्कंधाः षट्प्रकाराः स्युः, पृथ्वीजलच्छायाचतुरक्षविषय-कर्मप्रायोग्याप्रायोग्यभेदाः । तेषां भेदो वक्ष्यमाणसूत्रेषूच्यते विस्तरेणेति । (कलश--अनुष्टुभ्) गलनादणुरित्युक्त : पूरणात्स्कन्धनामभाक् । विनानेन पदार्थेन लोकयात्रा न वर्तते ॥३७॥ यह, पुद्गल-द्रव्य के भेदों का कथन है । प्रथम तो पुद्गल-द्रव्य के दो भेद हैं : स्वभाव-पुद्गल और विभाव-पुद्गल । उनमें, परमाणु वह स्वभाव-पुद्गल है और स्कन्ध वह विभाव-पुद्गल है । स्वभाव-पुद्गल कार्य-परमाणु और कारण-परमाणु ऐसे दो प्रकार से है । स्कन्धों के छह प्रकार हैं : (१) पृथ्वी, (२) जल, (३) छाया, (४) (चक्षु के अतिरिक्त) चार इन्द्रियों के विषयभूत स्कन्ध, (५) कर्म-योग्य स्कन्ध और (६) कर्म के अयोग्य स्कन्ध - ऐसे छह भेद हैं । स्कन्धों के भेद अब कहे जानेवाले सूत्रों में (अगली चार गाथाओं में) विस्तार से कहे जायेंगे । (कलश--हरिगीत)
(पुद्गलपदार्थ) गलन द्वारा (अर्थात् भिन्न हो जाने से) 'परमाणु' कहलाता है और पूरण द्वारा (अर्थात् संयुक्त होने से) 'स्कन्ध' नाम को प्राप्त होता है । इस पदार्थ के बिना लोक-यात्रा नहीं हो सकती ।
गलन से परमाणु पुद्गल खंध पूरणभाव से । अर लोकयात्रा नहीं संभव बिना पुद्गल द्रव्य के ॥३७॥ |