+ पुद्गल-द्रव्य के भेद -
अणुखंधवियप्पेण दु पोग्गलदव्वं हवेइ दुवियप्पं ।
खंधा हु छप्पयारा परमाणू चेव दुवियप्पो ॥20॥
अणुस्कन्धविकल्पेन तु पुद्गलद्रव्यं भवति द्विविकल्पम् ।
स्कन्धाः खलु षट्प्रकाराः परमाणुश्चैव द्विविकल्पः ॥२०॥
द्विविध पुद्गल द्रव्य है स्कंध अणु के भेद से ।
द्विविध परमाणु कहे छह भेद हैं स्कंध के ॥२०॥
अन्वयार्थ : [अणुस्कन्धविकल्पेन तु] परमाणु और स्कन्ध ऐसे दो भेद से [पुद्गलद्रव्यं] पुद्गल-द्रव्य [द्विविकल्पम् भवति] दो भेदवाला है; [स्कन्धाः] स्कन्ध [खलु] वास्तव में [षट्प्रकाराः] छह प्रकार के हैं [परमाणुः च एव द्विविकल्पः] और परमाणु के दो भेद हैं ।
Meaning : he substance matter is of two kinds; in the form of an atom (Parmanu) and in the form of molecules

  पद्मप्रभमलधारिदेव 

पद्मप्रभमलधारिदेव : संस्कृत
अथेदानीमजीवाधिकार उच्यते ।

यह, पुद्गलद्रव्यके भेदोंका कथन है ।प्रथम तो पुद्गलद्रव्यके दो भेद हैं : स्वभावपुद्गल और विभावपुद्गल । उनमें, स्वभावपुद्गलः परमाणुः, विभावपुद्गलः स्कन्धः । कार्यपरमाणुः कारणपरमाणुरिति स्वभाव-पुद्गलो द्विधा भवति । स्कंधाः षट्प्रकाराः स्युः, पृथ्वीजलच्छायाचतुरक्षविषय-कर्मप्रायोग्याप्रायोग्यभेदाः । तेषां भेदो वक्ष्यमाणसूत्रेषूच्यते विस्तरेणेति ।

(कलश--अनुष्टुभ्)
गलनादणुरित्युक्त : पूरणात्स्कन्धनामभाक् ।
विनानेन पदार्थेन लोकयात्रा न वर्तते ॥३७॥


यह, पुद्गल-द्रव्य के भेदों का कथन है ।

प्रथम तो पुद्गल-द्रव्य के दो भेद हैं : स्वभाव-पुद्गल और विभाव-पुद्गल । उनमें, परमाणु वह स्वभाव-पुद्गल है और स्कन्ध वह विभाव-पुद्गल है । स्वभाव-पुद्गल कार्य-परमाणु और कारण-परमाणु ऐसे दो प्रकार से है । स्कन्धों के छह प्रकार हैं : (१) पृथ्वी, (२) जल, (३) छाया, (४) (चक्षु के अतिरिक्त) चार इन्द्रियों के विषयभूत स्कन्ध, (५) कर्म-योग्य स्कन्ध और (६) कर्म के अयोग्य स्कन्ध - ऐसे छह भेद हैं । स्कन्धों के भेद अब कहे जानेवाले सूत्रों में (अगली चार गाथाओं में) विस्तार से कहे जायेंगे ।

(कलश--हरिगीत)
गलन से परमाणु पुद्गल खंध पूरणभाव से ।
अर लोकयात्रा नहीं संभव बिना पुद्गल द्रव्य के ॥३७॥
(पुद्गलपदार्थ) गलन द्वारा (अर्थात् भिन्न हो जाने से) 'परमाणु' कहलाता है और पूरण द्वारा (अर्थात् संयुक्त होने से) 'स्कन्ध' नाम को प्राप्त होता है । इस पदार्थ के बिना लोक-यात्रा नहीं हो सकती ।