+ कारण और कार्य-परमाणु द्रव्य -
धाउचउक्कस्स पुणो जं हेऊ कारणं ति तं णेयो ।
खंधाणं अवसाणं णादव्वो कज्जपरमाणू ॥25॥
धातुचतुष्कस्य पुनः यो हेतुः कारणमिति स ज्ञेयः ।
स्कन्धानामवसानो ज्ञातव्यः कार्यपरमाणुः ॥२५॥
जल आदि धातु चतुष्क हेतुक कारणाणु कहा है ।
अर खंध के अवसान को ही कारयाणु कहा है ॥२५॥
अन्वयार्थ : [पुनः] फिर [यः] जो [धातुचतुष्कस्य] (पृथ्वी,जल, तेज और वायु) चार धातुओं का [हेतुः] हेतु है, [सः] वह [कारणम् इतिज्ञेयः] कारण-परमाणु जानना; [स्कन्धानाम्] स्कन्धों के [अवसानः] अवसान को (पृथक् हुए अविभागी अन्तिम अंश को) [कार्यपरमाणुः] कार्य-परमाणु [ज्ञातव्य:] जानना ।
Meaning : That which is the cause of the four root matters (earth, water, fire and air) should be known as cause-atom, (Karana Parmanu). The smallest possible part of a molecule should be known as effect atom (Karya Parmanu).

  पद्मप्रभमलधारिदेव 

पद्मप्रभमलधारिदेव : संस्कृत
कारणकार्यपरमाणुद्रव्यस्वरूपाख्यानमेतत् ।

पृथिव्यप्तेजोवायवो धातवश्चत्वारः; तेषां यो हेतुः स कारणपरमाणुः । स एव जघन्य-परमाणुः स्निग्धरूक्षगुणानामानन्त्याभावात् समविषमबंधयोरयोग्य इत्यर्थः । स्निग्धरूक्षगुणा-नामनन्तत्वस्योपरि द्वाभ्याम् चतुर्भिः समबन्धः त्रिभिः पञ्चभिर्विषमबन्धः । अयमुत्कृष्ट-परमाणुः । गलतां पुद्गलद्रव्याणाम् अन्तोऽवसानस्तस्मिन् स्थितो यः स कार्यपरमाणुः । अणवश्चतुर्भेदाः कार्यकारणजघन्योत्कृष्टभेदैः । तस्य परमाणुद्रव्यस्य स्वरूपस्थितत्वात्विभावाभावात् परमस्वभाव इति ।

तथा चोक्तं प्रवचनसारे -
णिद्धा वा लुक्खा वा अणुपरिणामा समा व विसमा वा ।
समदो दुराधिगा जदि बज्झंति हि आदिपरिहीणा ॥
णिद्धत्तणेण दुगुणो चदुगुणणिद्धेण बंधमणुभवदि ।
लुक्खेण वा तिगुणिदो अणु बज्झदि पंचगुणजुत्तो ॥


तथा हि -
(कलश--अनुष्टुभ्)
स्कन्धैस्तैः षट्प्रकारैः किं चतुर्भिरणुभिर्मम ।
आत्मानमक्षयं शुद्धं भावयामि मुहुर्मुहुः ॥३9॥



यह, कारण-परमाणु द्रव्य और कार्य-परमाणु द्रव्य के स्वरूप का कथन है ।
  • पृथ्वी, जल, तेज और वायु यह चार धातुएँ हैं; उनका जो हेतु है वह कारण-परमाणु है ।
  • वही (परमाणु), एक गुण स्निग्धता या रूक्षता होने से, सम या विषम बन्ध के अयोग्य ऐसा जघन्य परमाणु है - ऐसा अर्थ है ।
  • एक गुण स्निग्धता या रूक्षता के ऊपर, दो गुणवाले का और चार गुणवाले का समबन्ध होता है तथा तीन गुणवाले का और पाँचगुणवाले का विषमबन्ध होता है, - यह उत्कृष्ट परमाणु है ।
  • गलते अर्थात् पृथक् होते पुद्गल द्रव्यों के अन्त में - अवसान में (अन्तिम दशा में) स्थित वह कार्य-परमाणु है (अर्थात् स्कन्ध खण्डित होते-होते जो छोटे से छोटा अविभाग भाग रहता है वह कार्य-परमाणु है )
(इसप्रकार) अणुओं के (परमाणुओं के) चार भेद हैं : कार्य, कारण, जघन्य और उत्कृष्ट । वह परमाणु द्रव्य-स्वरूप में स्थित होने से उसे विभाव का अभाव है, इसलिये (उसे) परम स्वभाव है । इसीप्रकार (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेव प्रणीत) श्री प्रवचनसारमें (१६५वीं तथा १६६वीं गाथा द्वारा) कहा है कि : —

परमाणुओं का परिणमन सम-विषम अर स्निग्ध हो ।
अर रूक्ष हो तो बंध हो दो अधिक पर न जघन्य हो ॥प्र.सा.१६५॥
दो अंश चिकने अणु चिकने-रूक्ष हों यदि चार तो ।
हो बंध अथवा तीन एवं पाँच में भी बंध हो ॥प्र.सा.१६६॥
परमाणु-परिणाम, स्निग्ध हों या रूक्ष हों, सम अंशवाले हों याविषम अंशवाले हों, यदि समान से दो अधिक अंशवाले हों तो बँधते हैं; जघन्य अंशवाला नहीं बँधता । स्निग्धरूप से दो अंशवाला परमाणु चार अंशवाले स्निग्ध (अथवा रूक्ष) परमाणु के साथ बन्ध का अनुभव करता है; अथवा रूक्षता से तीन अंशवाला परमाणु पाँच अंशवाले के साथ जुड़ा हुआ बँधता है ।

और

(कलश--वीर)
छह प्रकार के खंध और हैं चार भेद परमाणु के ।
हमको क्या लेना-देना इन परमाणु-स्कंधों से ॥
अक्षय सुखनिधि शुद्धातम जो उसे नित्य हम भाते हैं ।
उसमें ही अपनापन करके बार-बार हम ध्याते हैं ॥३९॥
उन छह प्रकार के स्कंधों या चार प्रकार के अणुओं के साथ मुझे क्या है ? मैं तो अक्षय शुद्ध आत्मा को पुनः पुनः भाता हूँ ।