+ काय-गुप्ति -
बंधणछेदणमारणआकुंचण तह पसारणादीया ।
कायकिरियाणियत्ती णिद्दिट्ठा कायगुत्ति त्ति ॥68॥
बंधनछेदनमारणाकुंचनानि तथा प्रसारणादीनि ।
कायक्रियानिवृत्तिः निर्दिष्टा कायगुप्तिरिति ॥६८॥
मारन प्रसारन बंध छेदन और आकुंचन सभी ।
कायिक क्रियाओं की निवृत्ति कायगुप्ति जिन कही ॥६८॥
अन्वयार्थ : [बंधनछेदनमारणाकुंचनानि] बंधन, छेदन, मारण (मार डालना), आकुञ्चन (संकोचना) [तथा] तथा [प्रसारणादीनि] प्रसारण (विस्तारना) इत्यादि [कायक्रियानिवृत्तिः] कायक्रियाओं की निवृत्ति को [कायगुप्तिः इतिनिर्दिष्टा] कायगुप्ति कहा है ।
Meaning : enunciation of bodily movements, such as binding, piercing, beating, contracting, expanding, etc., is called con- . trol of body (Kaya-gupti).

  पद्मप्रभमलधारिदेव 

पद्मप्रभमलधारिदेव : संस्कृत
अत्र कायगुप्तिस्वरूपमुक्तम् ।

कस्यापि नरस्य तस्यान्तरंगनिमित्तं कर्म, बंधनस्य बहिरंगहेतुः कस्यापिकायव्यापारः । छेदनस्याप्यन्तरंगकारणं कर्मोदयः, बहिरंगकारणं प्रमत्तस्य कायक्रिया । मारण-स्याप्यन्तरंगहेतुरांतर्यक्षयः, बहिरंगकारणं कस्यापि कायविकृतिः । कुंचनप्रसारणादिहेतुः संहरणविसर्पणादिहेतुसमुद्घातः । एतासां कायक्रियाणां निवृत्तिः कायगुप्तिरिति ।

(कलश--अनुष्टुभ्)
मुक्त्वा कायविकारं यः शुद्धात्मानं मुहुर्मुहुः ।
संभावयति तस्यैव सफलं जन्म संसृतौ ॥९३॥



यहाँ काय-गुप्ति का स्वरूप कहा है ।

  • किसी पुरुष को बन्धन का अन्तरंग निमित्त कर्म है, बन्धन का बहिरंग हेतु किसी का काय-व्यापार है;
  • छेदन का भी अन्तरंग कारण कर्मोदय है, बहिरंग कारण प्रमत्त जीव की कायक्रिया है;
  • मारण का भी अन्तरंग हेतु आंतरिक (निकट) सम्बन्ध का (आयुष्य का) क्षय है, बहिरंग कारण किसी की काय-विकृति है;
  • आकुंचन, प्रसारण आदि का हेतु संकोच विस्तारादिक के हेतुभूत समुद्घात है ।
इन कायक्रियाओं की निवृत्ति वह काय-गुप्ति है ।

(कलश--दोहा)
जो ध्यावे शुद्धात्मा तज कर काय विकार ।
जन्म सफल है उसी का शेष सभी संसार ॥९३॥
कायविकार को छोड़कर जो पुनः पुनः शुद्धात्मा की संभावना (सम्यक् भावना) करता है, उसी का जन्म संसार में सफल है ।