+ उपाध्याय -
रयणत्तयसंजुत्ता जिणकहियपयत्थदेसया सूरा ।
णिक्कंखभावसहिया उवज्झाया एरिसा होंति ॥74॥
रत्नत्रयसंयुक्ताः जिनकथितपदार्थदेशकाः शूराः ।
निःकांक्षभावसहिता उपाध्याया ईद्रशा भवन्ति ॥७४॥
रतन त्रय संयुक्त अर आकांक्षाओं से रहित ।
तत्त्वार्थ के उपदेश में जो शूर वे पाठक मुनी ॥७४॥
अन्वयार्थ : [रत्नत्रयसंयुक्ताः] रत्नत्रय से संयुक्त, [शूराःजिनकथितपदार्थदेशकाः] जिनकथित पदार्थों के शूरवीर उपदेशक और [निःकांक्षभावसहिताः] निःकांक्षभाव सहित - [ईद्रशाः] ऐसे, [उपाध्यायाः] उपाध्याय [भवन्ति] होते हैं ।
Meaning : Those (saints), who are brave, possessed of the three jewels,

  पद्मप्रभमलधारिदेव 

पद्मप्रभमलधारिदेव : संस्कृत
अध्यापकाभिधानपरमगुरुस्वरूपाख्यानमेतत् ।

अविचलिताखंडाद्वैतपरमचिद्रूपश्रद्धानपरिज्ञानानुष्ठानशुद्धनिश्चयस्वभावरत्नत्रयसंयुक्ताः । जिनेन्द्रवदनारविंदविनिर्गतजीवादिसमस्तपदार्थसार्थोपदेशशूराः । निखिलपरिग्रहपरित्यागलक्षण-निरंजननिजपरमात्मतत्त्वभावनोत्पन्नपरमवीतरागसुखामृतपानोन्मुखास्तत एव निष्कांक्षाभावना-सनाथाः । एवंभूतलक्षणलक्षितास्ते जैनानामुपाध्याया इति ।

(कलश--अनुष्टुभ्)
रत्नत्रयमयान् शुद्धान् भव्यांभोजदिवाकरान् ।
उपदेष्टॄनुपाध्यायान् नित्यं वंदे पुनः पुनः ॥१०५॥



यह, अध्यापक (अर्थात् उपाध्याय) नाम के परमगुरु के स्वरूप का कथन है ।

  • अविचलित अखण्ड अद्वैत परम चिद्रूप के श्रद्धान, ज्ञान और अनुष्ठानरूप शुद्ध निश्चय-स्वभावरत्नत्रयवाले;
  • जिनेन्द्र के मुखारविंद से निकले हुए जीवादि समस्त पदार्थ समूह का उपदेश देने में शूरवीर;
  • समस्त परिग्रह के परित्याग स्वरूप जो निरंजन निज परमात्म तत्त्व, उसकी भावना से उत्पन्न होनेवाले परम वीतराग सुखामृत के पान में सन्मुख होने से ही निष्कांक्ष भावना सहित
ऐसे लक्षणों से लक्षित, वे जैनों के उपाध्याय होते हैं ।

(कलश--दोहा)
वंदे बारम्बार हम भव्यकमल के सूर्य ।
उपदेशक तत्त्वार्थ के उपाध्याय वैडूर्य ॥१०५॥
रत्नत्रयमय, शुद्ध, भव्य-कमल के सूर्य और (जिनकथित पदार्थों के) उपदेशक - ऐसे उपाध्यायों को मैं नित्य पुनः-पुनः वन्दन करता हूँ ।