कायेंदियगुणमग्गण कुलाउजोणीसु सव्वजीवाणं
णाऊण य ठाणादिसु हिंसादिविवज्जणमहिंसा ॥5॥
अन्वयार्थ : [कायेंदियगुणमग्गण] काय, इन्द्रिय, गुणस्थान, मार्गणा, जीवसमास, [कुलाउजोणीसु] कुल, योनि द्वारा [सव्वजीवाणं] सभी जीवों का स्वरूप जानकर [ठाणादिसु] बैठना आदि में [हिंसादिविवज्जणमहिंसा] हिंसा को छोड़ना अहिंसा महाव्रत है ।