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रागादीहिं असच्चं चत्ता परतावसच्चवयणुत्तिं
सुत्तत्थाणविकहणे अयधावयणुज्झणं सच्चं ॥6॥
अन्वयार्थ : [रागादीहिं असच्चं चत्ता] रागादि के द्वारा असत्य बोलने का त्याग करना और [परतावसच्चवयणुत्तिं] पर को ताप करने वाले सत्य वचनों के भी कथन का त्याग करना तथा [सुत्तत्थाणविकहणे अयधावयणुज्झणं] सूत्र और अर्थ के कहने में अयथार्थ वचनों का त्याग करना [सच्चं] सत्य महाव्रत है ।