
सच्चित्ताचित्ताणं किरियासंठाणवण्णभेएसु
रागादिसंगहरणं चक्खुणिरोहो हवे मुणिणा ॥17॥
अन्वयार्थ : [सच्चित्ताचित्ताणं] सचेतन और अचेतन पदार्थों की [किरियासंठाणवण्णभेएसु] क्रिया, चित्रकर्म आदि संस्थान और वर्ण के भेदों में [मुणिणा] मुनिराज के जो [रागादिसंगहरणं] राग द्वेष आदि संग का त्याग है वह [चक्खुणिरोहो हवे] चक्षुनिरोध व्रत होता है।