+ घ्राणेन्द्रिय निरोध व्रत -
पयडीवासणगंधे जीवाजीवप्पगे सुहे असुहे
रागद्देसाकरणं घाणणिरोहो मुणिवरस्स ॥19॥
अन्वयार्थ : [जीवाजीवप्पगे] जीव और अजीव स्वरूप [सुहे असुहे] सुख और दु:ख रूप [पयडीवासणगंधे ] प्राकृतिक तथा पर-निमित्तिक गन्ध में जो [रागद्देसाकरणं] राग-द्वेष का नहीं करना है वह [मुणिवरस्स] मुनियों का [घाणणिरोहो] घ्राणेन्द्रिय निरोध व्रत है।