
असणादिचदुवियप्पे पंचरसे फासुगम्हि णिरवज्जे
इट्ठाणिट्ठाहारे दत्ते जिब्भाजओऽगिद्धी ॥20॥
अन्वयार्थ : [असणादिचदुवियप्पे] अशन आदि से चार भेदरूप, [पंचरसे] पंच रसयुक्त, [फासुगम्हि] प्रासुक, [णिरवज्जे] निर्दोष, [दत्ते] पर के द्वारा दिये गये [इट्ठाणिट्ठाहारे] रूचिकर अथवा अरुचिकर आहार में [जिब्भाजओऽगिद्धी] लम्पटता का नहीं होना रसनेन्द्रिय निरोध व्रत है ।